आखिर आज का दिन भी बीत ही गया और कल की सुबह भी
होगी ही | जब सुबह होगी तो जाहिर सी बात है मुझे भी जागना ही पड़ेगा और रोज की
भांति स्कूल भागना ही पड़ेगा | नहीं....बिलकुल नहीं... मैं आपको बता दूँ मैं
स्टूडेंट बिलकुल नहीं हूँ ,मैं एक टीचर कहलाता हूँ और वो भी एक प्राइवेट स्कूल का |
ऐसा प्राइवेट स्कूल जहाँ के कई सारे नियम भी प्राइवेट ही होते हैं | जैसे कल
रजिस्टर पर मेरे साइन नहीं हुए क्योंकि कल मैं 5 मिनट के घोर विलम्ब से स्कूल
पहुँचा था हालाँकि वो बात अलग है कि छुट्टी के बाद प्रतिदिन 30 मिनट से भी देर में
जाने दिया जाता है | ऐसा इसलिए होता है क्योंकि 5 मिनट को अनंत मानकर गिनना
न्यायोचित है और 30 मिनट को नगण्य मानकर छोड़ देना कॉमनसेन्स की बात है | और हाँ
नियमों की अगर बात की जाये तो जितने नए-नए नियम हमारे विद्यालय में बनते और बदलते
हैं उतने तो शायद इतने संसोधनों के बाद भारतीय संविधान में भी नहीं बने होंगे |
खैर
नियमों से हमें कोई खास परेशानी नहीं होती क्योंकि हम तो हमेशा से नियमावली के
अनुरूप चलने वाले जीवों में सुमेलित किये जाते हैं | हमने कई नियमों को सहर्ष
स्वीकार लिया था जैसे अगर चपरासी न आये तो घंटा लगाने का नियम ,इस नियम से हमें
कोई परेशानी महसूस नहीं हुई हालाँकि कुछ शिक्षकों के उपहास का पात्र अवश्य बना
किन्तु इसको एक साधारण घटना समझकर मुस्कुराकर पचा गया | थोड़ी टीस उस समय लगी जब
प्रधानाचार्य जी ने कहा कि चपरासी घंटा सही टाइम पर नहीं लगाता ,ऐसा है दीपक जी आप
सही टाइम पर किसी बच्चे से घंटा लगवा दिया करो | उनको चपरासी को सुधारने की जगह
मुझे चपरासी का कार्यभार सौंपना लाख गुना भाया होगा | थोड़ी टीस हुई मन में ,मन ने
विद्रोह भी किया किन्तु इसे भी परम आदेश मानकर सहर्ष स्वीकार किया |
अब मैं स्कूल का
शिक्षक-कम-चपरासी बन गया | मैंने भी कार्य को पूर्ण कुशलता से किया | स्कूल का
टाइम टेबल का फोटो अपने मोबाइल का वॉलपेपर बना लिया मजाल क्या घंटा एक भी मिनट
इधर-उधर हो जाये | खूब वाहवाही मिली | जब कभी भी मैं स्कूल न जाकर अगले दिन स्कूल पहुँचता
था तो टीचर्स कहते थे – दीपक जी आप कल नहीं आये घंटे टाइम पर नहीं लगे और इस ब्रह्मवाक्य
को मैं अपनी त्रुटि समझकर मन ही मन मुस्कुराकर टाल जाता था | एक दिन प्रधानाचार्य
जी बैठे हुए मैदान में खूंटे से बंधी गाय को अपलक निहार रहे थे ,मुझे देखते ही
बुला लिया हालाँकि सभी कुशल शिक्षक वहाँ थे किन्तु हमारे स्कूल का चपरासी नहीं आया
था अतः मुझसे बोले –दीपक जी गाय को खोलकर बाँध दोगे हालाँकि गाय बाँधना पुण्य का
कार्य होता है किन्तु वह गाय भी बहुत क्रीड़ाकारी थी इसलिए इस पुनीत कार्य को करने की
हिम्मत नहीं जुटा पाया और अपनी अयोग्यता प्रकट की | खैर प्रधानाचार्य जी ने भी कोई
अतिरिक्त दबाब नहीं डाला वर्ना मुझे गाय बाँधने के बाद सानी भी करनी पड़ जाती |
अरे मैं कहाँ बातों में लग गया समय अधिक हो गया है अब सो जाता हूँ वर्ना कल भी हाजिरी नहीं लग पायेगी आगे की कहानी बाद में बताऊंगा गुड नाईट